संगी हो गुरु चाणक्य ल कोन नई जानय उंखर बताये नीति मन ल अपना के आज लोगन बड़का मन बुद्धिजीवी, राजनीतिज्ञ उद्योगपति अउ बड़का आदमी बनत जात हे
गुरु चाणक्य ह अपन नीति म तीन सीख देहे रिहिस जेला अपना के आप घलो सफल मनखे बन सकत हव
जानना चाहहु वो सिख मन कोन कोन से हे त आवव हम आप मन ल बताबो गुरु चाणक्य के वो तीन सिख का रिहिस...
पहिली सीख :- गियान पाए के सीख (ज्ञानार्जन)
गुरु चाणक्य ह ये बात बोले रिहिन के जिनगी म कहूँ भी कभू भी कोई भी बेरा म कोई गियान के बात मिलत है त ओला खच्चित झोंक लेवव हव संगी हो कुछु सीखे के कोई उमर नई होवय हमन ल जिनगी म कुछ न कुछ नवा सीखत रहना चाही ताकि हमर ब्यक्तित्व बिकास होवय अउ हमू मन लोगन ल कुछु नवा सीखा सकन।
दूसर सिख :- खाना खाएं के सीख (भोजन करना)
गुरु चाणक्य के दूसर सिख रिहिस के हमन ल अपन पेट के ख्याल राखत खाना खा लेना चाही कभू बी भूखा पेट नई रहना चाही अपन जरूरत अनुसार भोजन कर लेना चाही ओमा लजाना बिल्कुल नई चाही सही बी बात हे संगी हो हमन खाये पिये के मामला म भारी लापरवाह होवत जात हन, जइसे बी होये कभू बी अपन भोजन ल छोड़ना नई चाही सुरता करके भोजन कर लेना चाही समय म।
तीसरा सीख:- लाज नई मरे के सीख (संकोच)
गुरु चाणक्य के तीसरा सिख जेमा उमन बोले है कि अगर कोई काम गलत लागत हे तो गलती करैया ल बेझिझक टोकना जरूरी है चाहे गलती करैया आप के कतको करीबी क्यों न रहय। संगी हो आप मन जानत हो जिनगी म कई अइसे मोड़ आथे जेमा ये देखे ल मिलथे के कोई मनखे हमर आँखी के आघु गलती करत है अउ हम ओला कुछु नई बोल पावत हन जेन हमर सबले बड़का कमजोरी हरे संगी हो हमन ल अपन संकोची प्रवृति ल तियागे ल परही तभे हमर जिनगी सफल होही।
त आप मन देखेव संगवारी हो गुरु चाणक्य ह कइसे सुग्घर सुग्घर सिख दे हे जेखर ले मनखे अपन ब्यक्तित्व बिकास कर सकत हे।
एसनहे सुग्घर गोठ बात के सिलसिला ह जारी रइही "अपनी बात आपके साथ" म
गुरु चाणक्य ह अपन नीति म तीन सीख देहे रिहिस जेला अपना के आप घलो सफल मनखे बन सकत हव
जानना चाहहु वो सिख मन कोन कोन से हे त आवव हम आप मन ल बताबो गुरु चाणक्य के वो तीन सिख का रिहिस...
पहिली सीख :- गियान पाए के सीख (ज्ञानार्जन)
गुरु चाणक्य ह ये बात बोले रिहिन के जिनगी म कहूँ भी कभू भी कोई भी बेरा म कोई गियान के बात मिलत है त ओला खच्चित झोंक लेवव हव संगी हो कुछु सीखे के कोई उमर नई होवय हमन ल जिनगी म कुछ न कुछ नवा सीखत रहना चाही ताकि हमर ब्यक्तित्व बिकास होवय अउ हमू मन लोगन ल कुछु नवा सीखा सकन।
दूसर सिख :- खाना खाएं के सीख (भोजन करना)
गुरु चाणक्य के दूसर सिख रिहिस के हमन ल अपन पेट के ख्याल राखत खाना खा लेना चाही कभू बी भूखा पेट नई रहना चाही अपन जरूरत अनुसार भोजन कर लेना चाही ओमा लजाना बिल्कुल नई चाही सही बी बात हे संगी हो हमन खाये पिये के मामला म भारी लापरवाह होवत जात हन, जइसे बी होये कभू बी अपन भोजन ल छोड़ना नई चाही सुरता करके भोजन कर लेना चाही समय म।
तीसरा सीख:- लाज नई मरे के सीख (संकोच)
गुरु चाणक्य के तीसरा सिख जेमा उमन बोले है कि अगर कोई काम गलत लागत हे तो गलती करैया ल बेझिझक टोकना जरूरी है चाहे गलती करैया आप के कतको करीबी क्यों न रहय। संगी हो आप मन जानत हो जिनगी म कई अइसे मोड़ आथे जेमा ये देखे ल मिलथे के कोई मनखे हमर आँखी के आघु गलती करत है अउ हम ओला कुछु नई बोल पावत हन जेन हमर सबले बड़का कमजोरी हरे संगी हो हमन ल अपन संकोची प्रवृति ल तियागे ल परही तभे हमर जिनगी सफल होही।
त आप मन देखेव संगवारी हो गुरु चाणक्य ह कइसे सुग्घर सुग्घर सिख दे हे जेखर ले मनखे अपन ब्यक्तित्व बिकास कर सकत हे।
एसनहे सुग्घर गोठ बात के सिलसिला ह जारी रइही "अपनी बात आपके साथ" म